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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


उन्माद (कहानी) : मुंशी प्रेमचंद


यह मि. कावर्ड एक ही महापुरुष थे। उनकी उम्र चालीस से अधिक गुजर चुकी थी; पर अभी तक उन्होंने विवाह नहीं किया था। शायद उनका ख्याल था कि राजनीति के क्षेत्र में रहकर वे विवाह का आनन्द नहीं उठा सकते। वास्तव में नवीनता के मधूप थे।
उन्हे नित्य नये विनोद और आकर्षण, नित्य नये विलास और उल्लास की टोह रहती थी। दूसरों के लगाये हुये बाग की सैर करके चित्त को प्रसन्न कर लेना इससे कहीं सरल था कि अपना बाग आप लगायें और उसकी रक्षा और सजवट में अपना सिर खपायें। उनको व्यापारिक और व्याव्हारिक दॄष्टि में यह लटका उससे कहीं आसान था।
दोपहर का समय था। मि. कावर्ड नाश्ता करके सिगार पी रहे थे कि मिस जेनी रोज के अने की खबर हुयी। उन्होने तुरन्त आईने के सामने खड़े होकर अपनी सूरत देखी,बिखरे बालों को सवांरा, बहुमूल्य इत्र मला और मुख से स्वागत की सहास छवि दर्शाते हुये कमरे से निकलकर मिस रोज से हांथ मिलाया।
जेनी ने कदम रखते ही कहा-अब मैं समझ गयी कि क्यों कोई सुन्दरी तुम्हारी बात नहीं पूंछती। आप अपने वादों को पूरा करना नहीं जानते।
मि. कावर्ड ने जेनी के लिये कुर्सी खींचते हुये कहा-मुझे बहुत खेद है मिस रोज कि कल मैं अपना वादा न पूरा कर सका। प्राइवेट सेक्रेट्ररी का जीवन कुत्तों के जीवन से भी हेय है। बार बार चाहता था कि दफ्तर से उठूं; पर एक न एक काल ऐसा आ जाता था कि रुक जाना पड़ जाता था! मैं तुमसे क्षमा मांगता हूं। बाल में तुम्हे खूब आनन्द आया होगा?
जेनी-मैं तुम्हे तलाश करती रही। जब तुम न मिले तो मेरा जी खट्टा हो गया। मैं और किसी के साथ नहीं नाची। अगर तुम्हे नहीं जाना था तो मुझे निमन्त्रण क्यों दिया था।
कावर्ड ने जेनी को सिगार भॆंट करते हुये कहा-तुम मुझे लज्जित कर रही हो,जेनी! मेरे लिये इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती थी कि तुम्हारे साथ नाचता? एक पुराना बैचलर होने पर भी मैं उस सुख की कल्पना कर सकता हूं। बस यही समझ लो कि तड़प-तड़प कर रह जाता हूं।
जेनी ने कठोर मुस्कान के साथ कहा-तुम इसी योग्य हो कि बैचलर बने रहो। यही तुम्हारी सजा है।
कावर्ड ने अनुरक्त होकर उत्तर दिया-जेनी तुम बड़ी कठोर हो! तुम्ही क्या रमणियां सभी कठोर होती हैं। मैं कितनी ही पर्वशता दिखाऊं, तुम्हे विश्वास नहीं आयेगा। मुझे यह अरमान ही रह गया कि कोई सुन्दरी मेरे अनुराग और लगन का आदर करती।
जेनी- तुममें अनुराग हो भी तो? रमणियां ऐसे बहानेबाजों को मुंह नहीं लगाती।
कावर्ड-फ़िर बहानेबाज कहा। मजबूर क्यों नहीं कहती?
जेनी-मैं किसी को मजबुर नहीं मानती। मेरे लिये यह हर्ष और गौरव की बात नहीं हो सकती, कि आपको जब अपने सरकारी, अर्द्व सरकारी और गैर सरकारी कामोम से अवकाश मिले तो, आप मेरा मन रखने के लिये एक क्षण के लिये अपने कोमल चरणों को कष्ट दें। इसी कारण तुम अब तक झीक रहे हो।
कावर्ड ने गम्भीर भाव से कहा-तुम मेरे साथ अन्याय कर रही हो,जेनी! मरे अविवाहित रहने का क्या कारण है, यह कल तक मुझे खुद मालूम न था। कल आप ही आप मालूम हो गया।
जेनी ने उसका परिहास करते हुये कहा-अच्छा तो यह रहस्य आपको मालुम हो गया? तब तो आप सचमुच आत्मदर्शी हैं। जरा मैं भी तो सुनूं, क्या कारण था?
कावर्ड ने उत्साह के साथ कहा-अब तक कोई ऐसी सुन्दरी न मिली जो मुझे उन्मत्त कर सकती।
जेनी ने कठोर परिहास के साथ कहा-मेरा ख्याल था कि दुनिया में ऐसी औरत पैदा ही नहीं हुई, जो तुम्हे उन्मत्त कर सकती। तुम उन्मत्त बनाना चाहते हो, उन्मत्त बनना नहीं चाहते।
कावर्ड-तुम बड़ा अत्याचार करती हो जेनी!
जेनी-अपने उन्माद का प्रमाण देना चाहते हो?
कावर्ड-हृदय से जेनी! मैं उस अवसर की ताक में बैठा हूं।
उसी दिन शाम को जेनी ने मनहर से कहा-तुम्हारे सौभाग्य पर बधाई! तुम्हे वह जगह मिल गयी।
मनहर उछलकर बोला-सच! सेक्रेट्ररी से कोई बातचीत हुई थी?
जेनी-सेक्रेट्ररी से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी। सब कुछ कावर्ड के हांथो में है। मैंने उसी को चंग पर चढ़ाया। लगा मुझे इश्क जताने। पचास साल की तो उम्र है, चांद के बाल झड़ गये हैं, गालों पर झुर्रियां पड़ गयी हैं, पर अभी तक आपको इश्क का ख्ब्त है। अप अपने को एक ही रसिया समझते हैं। उसके बूढ़े चोंचले बहुत ही बुरे मालूम होते थे; मगर तुम्हारे ल्ये सब कुछ सहना पड़ा। खैर मेहनत सफ़ल हो गयी है। कल तुम्हे परवाना मिल जायेगा। अब सफ़र की तय्यारी करनी चाहिये।
मनहर ने गदगद होकर कहा-तुमने मुझ पर बड़ा एहसान किया है,जेनी!


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